पुस्तक रस विज्ञान (Ras Vigyan) का विवरण
प्राकृत जल से प्राकृत रस की ही यथा सृष्टि संभव होती है वैसे ही है प्राकृत मनसागोचर अखंड ज्ञानैक रस प्रमाद्वेत अमल और अखंड ज्योति स्वरूप परम ब्रह्मा में ही तदरूप अनंत रस का महा सिंधु अपने से अपने में अपने ही अपने सहज स्वभाव में अठखेलियां खेलता हुआ विज्ञान के दृग पथ का पथिक बनता है और कर्ता क्रिया करण विहीन सदा स्व रूप में स्थित रहता है वहां उर्मियो के उदियास्त की कल्पना करने के लिए अन्य का अस्तित्व नहीं है सूर्य चंद्र अग्नि कि वह किसी प्राणी पदार्थ व परिस्थिति की संज्ञा नहीं है।
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न तत्र किंचित् रसात यथा स्वर्ण आभूषण स्वर्ण मिट्टी के बर्तन मिट्टी रुई के वस्त्र रुई के रूप में ही विचारको को दिखाई देते हैं तथा रस से रसमई सृष्टि का होना ही सर्वमान्य सत्य स्वरूप है सत से असत् और अविनाशी से विनाश सील विजातीय तत्व नहीं प्रकट होते इसलिए श्रुतियों ने दृष्ट अदृष्ट सभी तत्वों को रसमय कहा है………..