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guru granth sahib श्री गुरुदेव अर्जुन देव जी द्वारा रचित सिख संप्रदाय का ग्रंथ “गुरु ग्रंथ साहिब” मुख्य धर्म ग्रंथ है। इसे इसे सर्वप्रथम सन 1604 में अमृतसर के हरमंदिर साहिब में प्रकाशित किया गया था।
guru granth sahib में कितने अध्याय chapter है?
इसमें कुल १४३० पन्ने/pages हैं,जिनमें कुल ५८९४ शब्द लिखे गए है।
Summary of guru Granth sahib
गुरु ग्रंथ साहिब में कर्म को रेखांकित किया गया है। इसमें कर्म की प्रधानता को दर्शाया गया है। जिसके अनुसार मनुष्य संसार में अपने कर्मो के माध्यम से ही प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब की शुरुवात में एक मूल मंत्र दिया हुआ है, जो हमारा परिचय उस परमात्मा lord ईश्वर से करवाता है। जिसकी सब अलग अलग रूपों,नामों से पूजा पाठ एवम् आराधना करते हैं।
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guru granth sahib के अनुसार परमपिता परमेश्वर को पाने के लिय इस सांसारिक जिमेदारी के जाल से परे जाकर पहाड़ो और वनों में भटकने की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा अपने दिल में ही वास करते है बस उनको महसूस करने की जरूरत है। लोगो के साथ अच्छा व्यवहार अच्छी मीठी वाणी का प्रयोग से हर किसी का ह्रदय( दिल) जितने की शिक्षा दी गई है। bhagavad gita pdf
English summary
Karma is outlined in the Guru Granth Sahib. It shows the primacy of karma, according to which man attains prestige in the world only through his actions. A Mool Mantra has been given in the beginning of Sri Guru Granth Sahib, which introduces us to that Supreme Lord God. Whose worship and worship in all different forms, names.
According to guru granth sahib, there is no need to go beyond the web of this worldly responsibility and wander in the mountains and forests to attain the Supreme Lord. God resides in his heart only he needs to be felt. Good behavior with people and good sweet speech have been taught to win everyone’s heart.
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What is in guru Granth sahib
श्री गुरू ग्रंथ साहिब में गुरमत संगीत के शुद्ध रूप में राग के थाट व सुरें कायम हैं । इसमें 31 मुख्य राग हैं तथा 30 छाया-लग राग हैं जैसे गउड़ी गुआरेरी, गउड़ी चेली आदि । दक्षिणी पद्धति से मिलते ‘मारू दखणी’, ‘रामकली दखणी’ भी हैं और पंजाब के खास मांझ व देशी राग – आसा, सूही व तुखारी हैं ।
इसमें लोक वारों की धुनों पर गाने की हिदायत है। जो इसे कठोर शास्त्रीय अनुशासित पकड़ से मुक्त कर गुरमत संगीत अनुसारी बनाकर सहज रूप प्रदान करती है। यह लोक संगीत के गायक रूपों की अपने आप छूट देकर सहज अनुशसन में बांधती है ।
गुरमति संगीत में वारों का गायन, पड़ताल और तबले वाले का गायन में सम्पूर्ण तौर पर शामिल होना, इस पद्धति को हिन्दुस्तानी संगीत परम्परा, दक्षिणी संगीत परम्परा एवं सूफीआना परम्परा से लासानी बनाता है ।
गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहित वाणी को तीन भागों में बांटा गया है पहला गुरु जी की वाणी, दूसरा बाहर में से सत्रहवीं सदी के बीच हुए संत महात्माओं की चुनी वाणी, तीसरा गुरुओं के निकटवर्ती भागों तथा महापुरुषों की वाणी।
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