अमृत पर्व: दशहरा | Amrit Parva: Dussehra

अमृत पर्व: दशहरा | Amrit Parva: Dussehra
अमृत पर्व: दशहरा | Amrit Parva: Dussehra

अमृत पर्व: दशहरा !

परम योगी स्वामी सनातन श्री सनातन आश्रम कुर्सी रोड, लखनऊ

महाविष्णु ने त्रेता युग में अपने नाना देवताओं के साथ भूमण्डल पर अवतरित होकर महान् लीला की असुरों एवं असुरी शक्तियों का विनाश किया। तपस्वियों, ऋषियों एवं साधकों को सत्य का भान कराया एवं उनकी रक्षा की। मनुष्य मात्र को मर्यादित किया।

लीला का रहस्य क्या है ?

लीला शब्द का अर्थ है सत्य का नाटकीय प्रस्तुतीकरण! अर्थ से ध्येय

स्पष्ट हो गया। श्रीभगवान् लीला द्वारा हमारे ही जीवन को नाटकीय ढंग से हमारे सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। बात है स्वर्ग और नर्क की दशरथ और ‘दशानन की। विचार करें दशरथ में भी दश है और दशानन’ में भी ‘दश है। यही ‘दश दशहरा और विजयादशमी में भी समाया हुआ है।

‘दश’ की लीला क्या है?

रथ (लगाम लगाना) लिया। जिसने दश इन्द्रियों को अर्थात् दसों:

दश इन्द्रियों का निग्रह (रथ) किया दशरथ कहलाया और जा मिला घट-घट वासी, अजर-अमर अविनाशी, स्वयंभू, आत्मारूपी भगवान् श्रीराम से ! ‘दश इन्द्रियाँ जिसकी बनी दश मुंह ! इन्द्रियों की विषय वासना में

हो गया जो लिप्त कहाया दशानन रावण ! मारा गया भगवान श्रीराम से ! – स्व + अर्ग स्वर्ग तथा न + अर्क नर्क

स्व अर्थात् आत्मा और अग्नि अर्थात् जो वार्षिकोत्सव बन आत्मा की

परिधि में व्याप्त हुआ उसे स्वर्ग हुआ। ‘न’ माने नहीं ‘अर्क’ माने आत्मा रूपी सूर्य को नकार कर विषय वासनाओं को दश मुंह बन बैठा उसे नर्क हो गता। नर्क को स्वर्ग में बदलने वाला दशरथ और स्वर्ग को नर्क में डालने वाला दशानन ।

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