पृथ्वी राज रासो prithviraj raso pdf download free

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Book NamePrthviraj raso pdf book
No. of Pages241
PDF Size6.8 MB
Languagehindi
PDF CategoryNovels
Published/UpdatedJUne 13,, 2022
Source / Creditshttps://archive.org/
Uploaded Byadmin

पृथ्वीराज रासो के बारे में 

prithviraj raso

पृथ्वीराज रासो prithvi raj raso pdf हिन्दी महाकाव्य परम्परा का आदि ग्रंथ माना जाता है । इस ग्रंथ में उनहत्तर समय ( सर्ग ) है । पृथ्वीराज रासो के रचियता का नाम चन्दरबरदाई ( वरददुई या वरदायी ) है । 

चन्दबरदाई का जन्मकाल , जन्मस्थान जाति , कुल , वंश , माता – पिता आदि का प्रामाणिक रूप से कोई इतिवृत्त नहीं मिलता । रासो में जो वर्णन है उनके आधार पर भी जन्म तिथि का निर्णय संभव नहीं है । बलभद्र विलास नामक ग्रंथ में संवत् 1132 माघ शुक्ला त्रयोदशी शुक्रवार के दिन कमला देवी के पुत्र का जन्म का उल्लेख है , यह पुत्र पृथ्वीराज है । 

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यदि इस तिथि पृथ्वीराज prithviraj raso  की जन्म तिथि स्वीकार कर लिया जाय तो चन्द कवि की भी यही जन्मतिथि माननी होगी क्योंकि रासो के वर्णन के आधार पर दोनों का जन्म एक ही दिन हुआ । ऐसा उल्लेख कई स्थलों पर मिलता है । पृथ्वीराज रासो के प्रथम समय छन्द सं . 694 के अनुसार 155 + 91 = 1206 विक्रमी संवत् ठहरता है । 

इस संवत् को नागरी प्रचारिणी सभा काशी के संस्करण में भी स्वीकार किया गया है । एकादस से पन्द्रह विक्रम साक अनन्द । तिहि रिपु जयपुर हरन कौं भय पृथिराज नरिन्द ॥ पृथ्वीराज रासो के विषय में अनेक मतवाद प्रचलित हैं । यदि उन सब पर विचार किया जाय तो रासो की प्रामाणिकता ही संदिग्ध हो जाती है ।

अतः इस विवाद में न पड़कर जो बहुमत से स्वीकृत है उसे ही स्वीकार करना हम उचित समझते हैं । इतिहासकारों ने पृथ्वीराज का जन्म 1120 वि . सं . और मृत्यु 1249 में मानी है । यदि चंद और पृथ्वीराज एक ही दिन उत्पन्न हुए तो यही तिथि चन्द कवि की जन्म तिथि माननी चाहिए । 

About Prithviraj raqso pdf in english

Prithviraj Raso prithvi raj raso pdf is considered to be the first book of Hindi epic tradition. There are seventy nine times (sarga) in this book. The name of the author of Prithviraj Raso is Chandrabardai (Vardadui or Blessed).

There is no authentic history of Chandbardai’s birth time, birthplace, caste, clan, lineage, parents etc. It is not possible to decide the date of birth even on the basis of the description given in the Raso. In the book Balabhadra Vilas, there is a mention of the birth of the son of Kamala Devi on Friday, 1132 Magh Shukla Trayodashi, this son is Prithviraj.

If the date of birth of Prithviraj Raso is accepted on this date, then the same date of birth of a few poets will also be considered because on the basis of the description of Raso, both were born on the same day. Such mention is found in many places. Prithviraj Raso’s first time verse no. According to 694, 155 + 91 = 1206 Vikrami Samvat is held.

This era has also been accepted in the edition of Nagari Pracharini Sabha Kashi. Ekadas to fifteen Vikram Sak Anand. Tihi Ripu Jaipur Haran Kaun Bhaya Prithiraj Narind There are many theories about Prithviraj Raso. If all of them are considered, then the authenticity of the Raso itself becomes questionable.

Therefore, instead of getting into this dispute, we consider it appropriate to accept only what is accepted by the majority. Historians have dated the birth of Prithviraj in 1120 V. No. And death is believed in 1249. If Chand and Prithviraj were born on the same day, then this date should be considered as the date of birth of Chand poet.

पृथ्वीराज रासो prithviraj raso pdf की भूमिका

पृथ्वीराज रासो हिंदी prithvi raj raso pdf साहित्य में एक बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिस के संबंध में अनेक विद्वानों के अनेक प्रकार के विचार है।

 कुछ विद्वान इसे प्रमाणिक रूप से मानते हैं और कुछ विद्वान पूर्ण रूप से तो नहीं पर आंशिक रूप से इसे एक ग्रंथ मानते हैं।

लोगों का विचार है कि पृथ्वीराज के समय चंद नाम का एक सचमुच में कवि हुआ था जिसने पृथ्वीराज रासो नाम का काव्य लिखा था। prithviraj raso was written by chandarvardai

चंद नाम का कवि पृथ्वीराज के समय था या नहीं इसका प्रमाणिकता और अप्रमाणिकता का विवाद प्रधान रूप से केंद्रित है।

Pustak ka vivaran: 

prithviraj raso pdf  mahan kavi chandar vardai ke dvara likhi hui hai. Chandarvardai ek mahan kavi ke saath saath jyotish gyan me bhi parangat the. Is book prithviraj raso pdf me aapko delhi ke king prithiviraj ke baare me bahut kuch jaanne ko milega.

पृथ्वीराज रासो की सारी घटनाओं को ऐतिहासिक दृष्टि से देखने वाले विद्वानों ने निश्चित रूप से यह बता दिया है कि यह बात कभी संभव नहीं दिखती है।

पृथ्वीराज रासो नामक ग्रंथ की साहित्यिक महिमा को प्रमाणित और समझने का प्रयास बहुत ही कम किया गया है प्रत्येक कथावाचक ग्रंथत्मक घटनाओं और ऐतिहासिकता कि जांच में अपनी सारी शक्ति लगा देते हैं।

चंदबरदाई पृथ्वीराज का मित्र,कवि और एक बहुत ही अच्छा सलाहकार था और वह ज्योतिष विद्या में भी निपुण था रासो में उसके तीनों रूपों का वर्णन है। रासो ग्रंथ के अनुसार दोनों के जन्म और मृत्यु की तिथि एक ही है।

चंदबरदाई के बारे में About poet chandravardai

हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के दरबार में चंद्रवरदाई एक मुख्य कवि थे जिन्होंने पृथ्वीराज रासो की रचना की।

दंतकथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज का जन्म एक ही दिन हुआ था।

Kahate Hain Prithviraj aur Chand bardai donon ek sath hi dikhai dete the aur donon ek dusre ke Bina adhure the donon ek sath hi is sansar se Vida hue the.

चंदबरदाई की कविताओं में पृथ्वी के युद्ध कौशल और प्रेम प्रसंग का वर्णन है। इस ग्रंथ में वीर रस और श्रंगार रस को प्रधानता दी गई है चंद्रवरदाई पृथ्वीराज चौहान के दरबार में सामंत भी थे। चंदबरदाई द्वारा रचा गया पृथ्वीराज रासो नामक है जो ढाई हजार प्रश्नों का एक विशाल ग्रंथ है।

Chandravardai aur Prithviraj ka ek alag tarah ka bahut hi Madhur aur atut sambandh tha.

चंदबरदाई को ज्योतिष,व्याकरण, काव्य, साहित्य,भाषा, पुराण और छंद शास्त्र जैसी अनेक विद्याओं में सिद्धता हासिल थी।

Chandbarday dwara Racha Gaya Prithviraj raso bahut hi prachalit Granth hai.

Prithviraj raso pdf ke kuch ansh

॥ संगलाचरण ॥ 

देव प्रदम्थ नम्य गुरयं, वानीय वंदे पयं |

शिष्ट धारन धारयं वप्तमती, लच्छोस चनोश्रयं ॥ 

तिष्टति ईंस दष्॒ट ददन॑, सनाथ सिद्धिश्रयं ।

थिचेजंगम जीव चंद नमयं, सवस वर्दामयं॥ छंद॥

१ यह मंगलाचरणा जिस छेद में चंद्र कमि ने कहा है उस का नाम उतप्त ने साठक प्रयोग क्रिया है आर दम नाम से यह छंद आज कल लो छंद यंथ प्रायः डप्लव्य हू उन में नहीं मिलता । यत्मपि उम्त क्रो परीक्षा करने से बह निःसंदेदह शाद्रलविक्रोडित नामक छंद मालम होता है परंउ जब तक उस का लत्तण अथवा नामान्तर होने का कोई प्रमाण नहों दिग्यलाया जाये तथ तक परातत्त्ववेत्ता विद्वान संतप्ट नहीं हो सक्ते |

\अतएव बहत खोज करने से मेरों मातृभाषा गजरातों के काव्यां में इस नाम के छंद मझभे मिलें आर १० ]2०एव, उ08०णी ए्ण, 5. 7७॥० साहव अपने गजरातो भाषा के व्याकरण के पद्वंध अथवा छूदविन्यास नामक प्रकरण थो एप्ठ २२३ मे उसके साठक्ाा नाम से ऋलल ३८ उत्तर के दो तक का छंद होना लिखते दे क्रि जिसयों प्रत्येक तु में ९१२ + ०८ १९ अत्षर होते हू | इस के सिवाय प्राकृतभाषा के किसी छंद््ंथ से अनवाद दोकऋर सं १४७६ में लो एक रूपदोप पिंगल नामक छंद यंथ बना हे उस में केघल ५२ छंदां के जत्तयणा

|

है है उस में भी साठक का यद्द लत्तण लिखा हे: ॥ साटक छंद लक्षण ॥ फर्म द्वादश अंक आद उसंग्या; मात्रा सिव्रो सागरे । दुज्जी वो करिंके कलाप्ट दस वो, अका विरामाधिक ॥ ९ ॥ अंते गुवे निहार घार सब के, औरों कछू भेद ना । तोसें मत्त उनोस अंक चरने, सेसे भण साठिक ॥

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