raghuvansham epic hindi Pdf Free Download रघुवंशम महाकाव्य रघुवंशम महाकवि कालीदास के महानतम महाकाव्य में से एक है।इसे मेघदूत ,कुमारसम्भव के समान ही श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है।यह मूलतः संस्कृत भाषा मे लिखा गया है। इस महाकाव्य में उन्नीस सर्गो के माध्यम से रघुकुल में उत्पन्न लगभग 29 राजाओं का वर्णन किया गया है।
जिसमे राजा दिलीप ,राजा रघु ,राजा दशरथ,राजा लव और अतिथि आदि का विशेष वर्णन किया गया है।इनकी यह कृति राजा दिलीप से शुरू होकर रघुवंश के राजा अग्निवर्ण तक का वर्णन करती है । आदिकवि वाल्मीकि की भांति इन्होने किसी एक को नायक की भूमिका में न दिखाकर समस्त रघुवंश के श्रेष्ठता को प्रस्तुत किया है। राजा अग्निवर्ण की गर्भवती पत्नी के राज्याभिषेक के बाद की घटना से ही इस महाकाव्य की समाप्ति होती है ।
महाकवि कालीदास
महाकवि कालीदास के महाकवि कालीदास बनने के पीछे कई किवदंतियां प्रचलित है।ऐसा कहा जाता है की ये बहुत ही मूर्ख किस्म के व्यक्ति थे।उसी समय एक विदुषी महिला विद्दोत्मा से जानबूझकर विवाह करा दिया गया बिना कालीदास की सच्चाई बताए।
एक दिन जब वह पत्नी को लेने गए थे जहा पर इनकी पत्नी ने इन्हे काफी बुरा भला कहा और संस्कृत में कुछ वाक्य कहा।कालीदास ने उन्ही में से प्रथम 3 शब्दों को लेकर तीन महाकाव्यों की रचना कर दी।जिसमे मेघदूत ,कुमारसंभवम और रघुवंशम शामिल है।
कालीदास ने कई सारी कृतिया रची।
जैसे की
- मेघदूत
- कुमारसम्भव
- रघवंशम
- ऋतुसंहार
- अभिज्ञान शकुंतलम (नाटक)
- विक्रम उर्वशी(नाटक)
- मालविका अग्निमित्र (नाटक) प्रमुख है ।
कालीदास की कलावधि गुप्त वंश के समकालीन मानी जाती है।संभवत ये तीसरी चौथी शताब्दी के बीच के गुप्त साम्राज्य से जुड़े हुए है।
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रघुवंशम : परिचय
रघुवंश में उन्नीस सर्ग संकलित है। इस में 21 छंदों का प्रयोग करके लगभग समस्त रघुकुल राजाओं का वर्णन किया है।21 सर्गों में निम्न राजाओं का वर्णन है ,
- दिलीप
- रघु
- अज
- दशरथ
- राम
- कुश
- अतिथि
- निषध
- नल
- नभ
- पुण्डरीक
- क्षेमधन्वा
- देवानीक
- अहीनगु
- पारिपात्र
- शिल
- उन्नाभ
- वज्रनाभ
- शंखण
- व्युषिताश्
- विश्वसह
- हिरण्यनाभ
- कौसल्य
- ब्रह्मिष्ठ
- पुत्र
- पुष्य
- धृवसन्धि
- सुदर्शन
- अग्निवर्ण
raghuvansham epic hindi Pdf Free Download कालीदास ने रघुवंश के माध्यम से उस समय के राजा के चरित्र , शासन,राजधर्म ,राज काज,समाज ,लोक कर्त्तव्य इत्यादि का विशेष वर्णन किया है। रघुकुल के राजाओं के महत्व को समझाने के साथ साथ कालीदास ने लोक जीवन से जुड़े कई विषयों पर भी काफी अच्छा प्रकाश डाला है।
“त्यागाय समृतार्थानां सत्याय मिभाषिणाम्।
यशसे विजिगीषूणां प्रजायै गृहमेधिनाम् ॥
शैशवेऽभ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैषिणाम्।
वार्धके मुनिवृत्तीनां योगेनानन्ते तनुत्यजाम् ॥”
“(सत्पात्र को दान देने के लिए धन इकट्ठा करनेवाले, सत्य के लिए मितभाषी, यश के लिए विजय चाहनेवाले, और सन्तान के लिए विवाह करनेवाले, बाल्यकाल में विद्याध्ययन करने वाले, यौवन में सांसारिक भोग भोगने वाले, बुढ़ापे में मुनियों के समान रहने वाले और अन्त में योग के द्वारा शरीर का त्याग करने वाले (राजाओं का वर्णन करता हूँ।))”। ( Source:wikipedia)
इस मे कई तरह के अलंकारों ,छंदों ,रीतियों,शैलियों का समुचित उपयोग किया गया है।
इस महाकाव्य में २१ प्रकार के छन्दों का प्रयोग हुआ है:
प्रयुक्त छन्द :21
अनुष्टुप, इन्द्रवज्रा, उपजाति, उपेन्द्रवज्रा, औपच्छन्दसिक, तोटक, द्रुतविलम्बित, पुष्पिताग्रा, प्रहर्षिणी, मंजुभाषिणी, मत्तमयूर, मन्दाक्रान्ता, मालिनी, रथोद्धता, वांशस्थ, वसन्ततिलका, वैतालीय, शार्दूलविकृडित, शालिनी, स्वागता, हरिणी।
काव्य की शुरुवात और सारांश
अनुक्रम
- तपोवन की यात्रा
- दिलीप की तपस्या
- रघु की अग्नि परीक्षा
- दिग्विजय
- विश्वजीत यज्ञ
- इंदुमती का स्वयंवर
- अज का राजितलक
- अज का स्वर्गवास
- पुत्रवियोग का शाप
- राम-जन्म
- राम-विवाह
- लंकेश-वध
- भरत-मिलाप
- वैदेही-वनवास
- राम का शरीर-त्याग
- उत्तराधिकारी कुश
- राजा अतिथि
- अतिथि के वंशज
- पतन की ओर
रघुवंशम की शुरुवात माता पार्वती और भगवान शिव की अर्चना से की गई है।
“वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥”
रघुवंश की कथा राजा दिलीप और उनकी पत्नी रानी सुदक्षिणा के गुरु वशिष्ठ के आश्रम में प्रवेश से होती है । फिर राजा दिलीप की प्रशंसा की गई है। वहा पर उन्हें गौमाता नंदिनी की सेवा करने के लिए खा जाता है वह उसे लेकर वन में विचरण करने के लिए जाते है ।कुछ समय बाद एक सिंह गौमाता को शिकार करने के उद्देश्य से आता है ।
वह झपट्टा मारकर गाय को मरने वाला ही होता है तभी राजा दिलीप उसके सम्मुख आकार अपने आप को उसके हवाले प्रस्तुत कर देते है।और गाय माता को बचा लेने का प्रयास करते है ।इस घटना से गौमाता नंदिनी बहुत प्रसन्न होती है और राजा दिलीप को बताती है उन्होंने ही राजा की परीक्षा लेने के लिए सिंह की रचना की थी।राजा के इस कृत्य से गौमाता बहुत प्रसन्न होती है और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद देती है ।
कुछ समय बाद राजा दिलीप को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है जिसका नाम वो रघु रखते है ।राजा रघु की वीरता के ही कारण इस वंश का नाम रघुवंश पड़ता है । राजा रघु ने अश्वमेध यज्ञ,विश्वजीत यज्ञ किया था।वह बहुत ही प्रतापी राजा थे।उन्होंने इंद्र और कुबेर को भी हराया था।
राजा दिलीप के पोते और राजा रघु के पुत्र राजा अज बहुत ही ओजस्वी और प्रतापी थे ।उन्होंने राजकुमारी इंदुमती से विवाह किया था।
राजा अज के पुत्र दशरथ,उनके पुत्र राम ,उनके पुत्र लव,फिर उनके पुत्र अतिथि का वर्णन आगे के अध्यायों में किया गया है ।
अंत में इस वंश के राजा अग्निवर्ण का वर्णन किया गया है जो राजा सुदर्शन के पुत्र थे । वह बहुत ही विलासी प्रकृति और हमेशा भोग विलास इत्यादि में संलिप्त रहता था जो इस महान वंश के पतन का कारण बना।
raghuvansham epic hindi Pdf Free Download समीक्षा
कालीदास ने बहुत ही सजीव ,मार्मिक वर्णन किया है।उन्होंने घटनाओं को इस तरह से वर्णित किया है की उन्हे पढ़ने के दौरान वो हमारे सामने खुद ब खुद एक फिल्म की भांति चलने लगती है ।उचित जगह पर उचित अलंकारों का प्रयोग करना हो या फिर किसी को कोई उपमा देनी हो कालीदास इस कला में अपने समकालीन कवियों यहां तक कि आधुनिक कवियों से भी कई स्थान ऊपर है ।
अन्य लेखकों की भांति इन्होने किसी एक व्यक्ति को नायक की भूमिका में नही गड़ा है अपितु सभी की जीवन यात्रा को उपर्युक्त तरीके से प्रस्तुत किया है। निस्संदेह रघुवंशम एक पढ़ने योग्य रचना है ।
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