संत रविदास के विचार – Sant Ravidas Book,Pustak Pdf Free Download
पूर्णिमा संत की प्रतीक है इसलिए सभी संतों का संबंध कहीं ना कहीं पूर्णिमा से जोड़ दिया गया है| ऐसी कलाएं बदलते बदलते चंद्रमा अंत में पूर्ण हो जाता है, उसी प्रकार साधक भी अपनी साधना करते-करते अंततः परमात्मा को प्राप्त कर संत हो जाता है | समता एक योग है जो रस्सी पर नृत्य करने वाले नट की भांति दो छोरों के बीच में अपने को साध कर रखना है और अपनी यात्रा पूर्ण करना है| ये दो छोर अचित या भौतिक संसार और चित् या चेतना संसार हैं|
भगवान बुद्ध ने इसे मध्यम मार्ग कहा है| चेतना संसार में पूर्ण प्रवेश ही भगवत प्राप्ति है, क्योंकि परमात्मा स्वय चेतना स्वरूप है| अहंकार को मारकर प्रेम और विरह की डोर पकड़ कर साधक अपने प्रेमी में विलीन हो जाता है यही मुक्ति है| परन्तु संत के लिए मुक्ति एक नई यात्रा का प्रारंभ है| प्रज्ञा के उदय होने पर उसे सारा संसार आत्मवृत्त दिखाई देने लगता है और इस प्रकार दूसरों का दुख देखकर उसमें करुणा का उदय होता है| करुणा के उदय होने पर जीव मात्र का दुख उसका दुख हो जाता है उसकी चेतना के प्रकाश से भूले भटके मानव को मार्गदर्शन मिलता है|
Sant Ravidas
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भौतिक जगत में उसके जीने का मात्र उद्देश्य यही है जीव का गुण चेतना है यह चेतना कभी-कभी प्रबल रूप से भी प्रकट होती है जिस देश में यह चेतना प्रबल रूप से प्रकट होती है उसी का नाम संत है| सत्य स्वरूप वह ज्योति जिसे हम परमात्मा कहते हैं उसका किसी भी देह में प्रकट होना असंभव नहीं है क्योंकि बीज रूप में वह हर जीव में विद्यमान है केवल चिंगारी की आवश्यकता है| चिंगारी मिलने पर वह प्रज्वलित हो उठती है और फिर अपनी शक्ति से स्वय जलती रहती है|
जिस देह में वह प्रकट होती है वह धन्य हो जाती है| कबीर जी ने कहा है ‘’बलिहारी वा घट की जा घट प्रकट होय’’ रविदास जी में यह अनंत ज्योतिर प्रकट हो चुकी थी| इसलिए कबीर जैसे महान संत ने भी इनको’’ साधुन में रविदास संत हैं ‘’कह डाला| दोनों संत समकालीन थे दोनों ने शोषित और दीन हीन मुक जनता को वाणी दी|