श्रीमद्भागवत महापुराण की संक्षिप्त प्रस्तावना।
कलयुग के लक्षण – श्रीमद् भागवत के 12 स्कंद।
पारंपरिक तौर पर इस पुराण के रचयिता वेदव्यास को माना जाता है। श्रीमद् भागवत महापुराण में 335 अध्याय और 12 स्कंध है। श्रीमद् भागवत ऋषि वेदव्यास द्वारा लिखा गया है, ऋषि सुखदेव जी जो वेदव्यास के बेटे थे उन्होंने श्रीमद्भागवत को राजा परीक्षित को सुनाया था। राजा परीक्षित वह जिनको ऋषि श्रृंगी द्वारा 7 दिनों में तक्षक सांप द्वारा मारे जाने का श्राप दिया गया था। पुराणों के क्रम में भागवत महापुराण का चौथा स्थान है।
श्रीमद् भागवत महापुराण भगवान सुखदेव द्वारा राजा परीक्षित को सुनाया गया। इसमें भक्ति मार्ग का वर्णन है। इसके प्रत्येक श्लोक भगवान प्रेम से ओतप्रोत है, श्रीमद् भागवत पुराण में ज्ञान – साधना, सिद्धि साधना, भक्ति अनुग्रह, मर्यादा, अध्यात्म,द्वैत ,अद्वैत, निर्गुण, सगुण तथा अनेक रहस्य का भंडार है। ऐसा कहा जाता है कि भागवत महापुराण की श्रवण करने की इच्छा मात्र से भगवान श्री हरि हृदय में आकर बंदी बन जाते हैं, यही भागवत का संबंध है ऐसे महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित श्रीमद्भागवत के रहते हुए अन्य शास्त्र से क्या प्रयोजन है। सभी सभी शास्त्रों का समन्वय है भागवत पुराण।
प्रथम स्कंद
इस पुराण के प्रथम स्कंद में 19 अध्याय है, जिनमे शुकदेव जी भगवान के विविध अवतारों का वर्णन करते है। भगवान के प्रथम अवतार , दूसरा अवतार , तृतीय अवतार , चतुर्थ अवतार , पंचम अवतार, से लेकर 22 वा अवतार तक का वर्णन किया गया है। प्रथम स्कंद में व्यास जी ने अपने आश्रम में ब्रह्मा नदी सरस्वती के पश्चिम तट पर संप्रास संस्थान में श्रीमद् भागवत पुराण की रचना की थी। इसी स्कंद में अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा का मान मर्दन किया गया है, भीष्म पितामह द्वारा युधिष्ठिर को उपदेश देना और प्राण त्याग। प्रथम स्कंद में श्रीकृष्ण भगवान का द्वारिका गमन की चर्चा की गई है।
द्वितीय स्कंध
द्वितीय स्कंध का प्रारंभ भगवान के विराट रूप धारण से होता है, इसके बाद इसमें बताया गया है, की सभी जीवात्मा में भगवान श्री हरि का वास है, आगे इसी स्कंद में सभी देवताओं की उपासना, महान ग्रंथ गीता (जिसके इर्द गिर्द ही सभी प्रेरणादाई किताबे लिखी जाती है) भगवान की विराट स्वरूप की महिमा को बताया गया है। भगवान की दस लक्षणों और सृष्टि-उत्पति का उल्लेख भी इस स्कंध में देखने को मिलता है।
तृतीय स्कंध
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तृतीय स्कंध में भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं तथा माता यशोदा से संबंधित मनमोहक प्रस्तुति की गई है। इसके अलावा संकादिक से श्रीहरि से भेट। इस स्कंद में विदुर और मैत्रियी ऋषि की भेंट तथा सृष्टि क्रम का उल्लेख, ब्रह्मा की उत्पत्ति सृष्टि विस्तार का वर्णन, वाराह कथा की वर्णन, जय- विजय का सनत कुमार द्वारा स्थापित होकर विष्णु लोक से गिरना और दीप्ति के गर्भ से हिरना कश्यप के रूप में जन्म लेना। वाराह अवतार द्वारा हिरनकश्यपु का वध। जय विजय का पुन:जन्म इत्यादि।
चतुर्थ स्कंद
भागवत पुराण के चतुर्थ स्कंद का भाव यह है, की मनुष्य अपनी इंद्रियों का उपयोग का उपभोग से निरंतर वह विलास में पढ़कर अपने शरीर का नाश करता है, और बुढ़ापा में अनेक रोगों से ग्रसित होकर अपने शरीर को अनेक कष्टों से भरकर अपना प्राण त्याग करता है। इसलिए मनुष्य को अपने इंद्रियों को वश में करके जीवन यापन करना चाहिए ताकि मनुष्य का यौवन, बुद्धि, और तेज बना रहे।
पंचम स्कंद
पंचम स्कंद में प्रियव्रत, ऋषभदेव तथा भारत आदि राजाओं का चरित्र वर्णन किया गया है। भरत का मिर्ग मोह योनि में जन्म, फिर गंडक नदी के प्रताप से ब्राह्मण कुल में जन्म तथा सिंधु सौवीर नरेश से आध्यात्मिक संवाद का उल्लेख है। राजा प्रियव्रत का संकल्प, राजा नाभी का चरित्र, ऋष पुत्रों का उपदेश,
ऋषभदेव जी का देह त्याग, भरत चरित्र, भरत जी मृग योनि का मिलना, भारत जी का पुनर्जन्म का होना। देवी चंडिका का भरत जी की रक्षा करना। गंगा जी की उत्पत्ति का वर्णन। भारतवर्ष का महत्व और वर्णन। सात लोक का वर्णन। नरक कितने प्रकार के होते है, वर्णन इत्यादि।
षष्ठ स्कन्ध भागवत पुराण
भागवत पुराण के षष्ठ स्कन्ध का प्रारंभ कान्यकुब्ज ब्राह्मण अजामिल के व्याख्यान से शुरू होता है। भागवत धर्म का महिमा बताते हुए विष्णु- दूत कहते है, की कोई भी अधर्मी चोर, शराबी, पत्नी गामी चाहे कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो यदि वह भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करता है, तो उसके कोटि कोटि के जन्म के पाप नष्ट हो जाते है। इस स्कंद में दक्ष प्रजापति के वंश का भी चर्चा की गई है।
श्रीमद्भागवत महापुराण
सप्तम स्कंद
भागवत पुराण के सप्तम स्कंद में भक्त राज पहलाद और हिरण्यकश्यप की कथा की विस्तार पूर्वक चर्चा है। इसके अलावा नरसिंह अवतार की कथा की भी चर्चा की गई है।
अष्टम स्कंद
भागवत महापुराण के अष्टम स्कंध में समुद्र मंथन और विष्णु द्वारा अमृत बांटने की की विस्तार पूर्वक चर्चा है। देवासुर संग्राम और भगवान के ‘ वामन अवतार’ की कथा भी इसी स्कंध में है, अंत में मत्स्यावतार की चर्चा के साथ यह अष्टम स्कंध समाप्त हो जाती है।
नवम स्कंद
इस स्कंद में मनु एवं उनके पांच पुत्रो के वंश का वर्णन किया गया है, उनके पांच पुत्रो का वंश निम्न है,
- इक्ष्वाकु वंश
- नीमी वंश
- चंद्र वंश
- अनु वंश
- विश्वामित्र वंश
- पूर्व वंश
- भरत वंश
- मगध वंश
- अनु वंश
- यदु वंश
- द्रहु वंश
इसके अलावा राम सीता का भी विस्तार से विश्लेषण किया गया है।
दशम स्कंद
श्री भागवत महापुराण के दशम स्कंद में दो खंडों में विराजित है, पूर्वार्ध और उत्तरार्ध भाग में विभाजित है। पूर्वार्ध के अध्याय में श्री कृष्ण के जन्म से लेकर अक्रूर जी के हस्तिनापुर जाने की कथा का विस्तार रूप से वर्णन है। उत्तरार्ध में जरासंध से युद्ध द्वारकापुरी का निर्माण रुक्मणी हरण और श्री कृष्ण का गृहस्थ धर्म पालन और शिशुपाल वध आदि का वर्णन है।
एकादश स्कंद
भागवत महापुराण के इस स्कंद में ईश्वर के सभी कलाओं का वर्णन है, वर्णाश्रम धर्म, ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग का वर्णन है।
द्वादश स्कंध
भागवत महापुराण के इस स्कंद राजा परीक्षित के बाद के राजवंशों का वर्णन किया गया है।
भागवत महापुराण के सारांश
श्रीमद्भागवत को कल्पवृक्ष माना गया है, जिसके श्रवण मात्र से सभी प्रकार के फल प्राप्त होते है, भक्त और भगवान के बीच प्रगाढ़ संवाद को जोड़ता है। भागवत महापुराण के पाठ से मन के सारे संशय स्वता ही दूर हो जाते हैं, मन का विचार शुद्ध हो जाता है, मन में शांति मिलती है, जो की पर्याप्त धन दौलत के बावजूद लोग को शांति नहीं मिलती है। इसलिए सभी जीवात्मा को भागवत महापुराण कथा का अनिवार्य रूप से श्रवण करना चाहिए।
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