Karmyog by Swami Shri Akhandanand Saraswati Hindi PDF Book – Social (Samajik) कर्मयोग : स्वामी श्री अखण्डानन्द सरस्वती द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक – सामाजिक |
‘ यह मेरा हाथ भगवान है। यह मेरा हाथ श्रेष्ठ भगवान है।’
Karmayog by Swami akhandanand Saraswati Hindi pdf download पुस्तक सत साहित्य प्रकाशन ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किया गया है, इस पुस्तक में महाराज श्री स्वामी श्री अखंडानंद सरस्वती जी के अनुपम वाणी को प्रस्तुत किया गया है।Karmyog
श्रीमद्भागवत गीता के तृतीय अध्याय को कर्मयोग नाम से जानते हैं। इस दुर्गम कर्म सिद्धांत को सरस सरल कर सुगम बनाकर प्रस्तुत किया है, महाराज श्री स्वामी श्री अखंडानंद सरस्वती जी की अनुपम वाणी का संकलन है,यह कर्मयोग पुस्तक।
स्वामी जी कहते है, संसार में जितने सुख, भोग, ऐश्वर्य है,वे सब के सब कर्म के द्वारा प्राप्त होते है। अर्थात हमारे हाथ में बैठकर इंद्र ही करता है और वहां स्वर्ग में बैठकर इंद्र ही भोक्ता है।
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Karmyog by Swami Shri Akhandanand Saraswati Hindi PDF Book
स्वामी जी द्वारा बताए गए कर्म के सिद्धांत
(Karmyog )स्वामी जी कहते है, शरीर है, तो सर्दी, गर्मी, निवास, वस्त्र, भोजन तथा संघ साथ में भी अनुकूलता प्रतिकूलता रहेगी ही। संसार के सब वस्तुएं, सब घटनाएं हमारे इच्छा के अनुसार हो ऐसा संभव नहीं है। सबके अभ्यास, संस्कार शरीर के उपादान विचार अलग-अलग हैं, दो बच्चे साथ-साथ धूप में खेलते हैं उनमें से एक को लू लग जाने से बीमार हो जाता है, और दूसरा नहीं।
जब मनुष्य को यह भाव हो जाता है कि उसका शरीर नहीं आत्मा है, जब यह ज्ञात हो जाता है कि शरीर ना मैं हूं ना शरीर मेरा है, तब उसे प्रिय अप्रिय विचार स्पर्श नहीं करेंगे। अशरीर अवस्था का अर्थ है, मुक्तअवस्था।
मनुष्य जैसे कुल में उत्पन्न होता है। उसके संस्कार उसमे नौ रूपों में विद्यमान रहता है।
‘हम उत्तम गुरु के शिष्य है, अच्छे पिता के पुत्र है, अमुक आश्रम के या अमुक संप्रदाय के हैं’ इसका विचार करके भले लोग अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान रखते है।
मनुष्य के कुल के अनुसार संस्कार निम्नलिखित है;
- अचार
- विनय
- विद्या
- प्रतिष्ठा का विचार
- तीर्थ
- निष्ठा
- जीविका
- तप
- दान
निस्काम कर्म कीजिए फल की इच्छा नहीं करना चाहिए।
(Karmyog )आज के समय में मनुष्य जीवन इतना विडंबना में हो गया है, कि प्रत्येक व्यक्ति काम करने में देखता है_ ‘ इसमें मुझे क्या लाभ होगा?’
वृंदावन में श्री हाथी बाबा प्रसिद्ध महात्मा थे। खूब लंबा विशाल शरीर था, पी गौरव ऑर्टन था चित्रकूट के वनों में बहुत दिन रहे थे। कभी-कभी मेरे पास भी आ जाते थे। एक दिन घूमते हुए मेरे पास आ बैठे। उस समय कोलकाता के एक मारवाड़ी सेठ आए और उन्होंने मुझसे पूछा – राम राम करने से क्या लाभ है?’
श्री हाथी बाबा जी बोल पड़े- ‘ यह बनिया लगता है।’ सोचना चाहिए की क्या निष्काम कर्म नामक वस्तु मर गई?
मेरे हाथ कंधे से ऊपर उठना बंद हो गया था। कब से बंद हुआ, मुझे पता नहीं था। ‘ एक दादा आए और बोले ‘स्वामी जी’ स्पष्ट बात कहूं?’
मैने कहा ‘कहिए’।
वैद्य जी बोले; ‘ यदि आप भगवान को प्रतिदिन साष्टांग प्रणाम करते होते तो हाथ के रोग का उसी दिन पता लग जाता, जिस दिन प्रारंभ हुआ था। एक वर्ष से यह रोग है, और आपको पता नहीं लगा। यह है, कर्म योग और निष्काम कर्म की महिमा।
चार कारणों से रोग होते है।
स्वामी जी कहते है, की चार कारणों से रोग होता है;
1) बहुत अधिक श्रम से 2) अत्यंत प्रिय के वियोग से 3) जो नही चाहते उसके मिलने से 4) देह में कफ- वात पित्त धातुएं के विषमता से।
75% रोग मन में भय, चिंता, राग- द्वेष आने से होता है। मन में जो काम, क्रोध, लोभ, भय आते हैं; पाप के पूर्व रूप है। ये जब आए तब उपनिषद, गीता, रामायण का स्वाध्याय करो, सत्संग में चले जाओ या प्राणायाम करो यह मिट जाएंगे।
दुःख क्या है,? और कर्म का अदर्श क्या है?
स्वामी जी कहते है, की न धन हरण का नाम दु;ख है, न जन – मरण का नाम दु:ख है। ना संयोग दुख है, न वियोग दु:ख है। दु:ख होता है, मन में। मन निर्मल हो तो दुख नहीं है।
आप दाल बनाते है, यदि दाल गल गई तो सिद्ध हो गया की उसे बनाने में आपने पूरा मन लगाया। इसलिए जो भी काम करे- यदि वह अपनी आत्म तृप्ति को करते है, तो यह ज्ञान हो गया। यदि करने में मन एकाग्र होता है, तो योग हो गया । यदि भगवान सेवा कर्म करते है, तो भक्ति हो गई। यदि कार्य ठीक ठीक कर रहे है, तो धर्म हो गया।
ईश्वर पर विश्वास करना मन की दुर्बलता नही है। ईश्वर पर विश्वास आत्मबल है। ईश्वर पर भरोसा आप को निकम्मा बनाने के लिए नहीं है। यह समझाने के लिए है कि यह पूरा संसार, संपूर्ण ब्रह्मांड, ग्रह, नक्षत्र और इन सब में छिपी शक्ति आपकी सहायता कर रही है। ईश्वर का अर्थ है, सर्वज्ञ, सर्व शक्तिमान अर्थात शक्ति युक्त ज्ञान। मैं उसके अनुकूल कार्य करता हूं, तो वह अवश्य मेरी सहायता करेगा।
कर्म का विरोधी कोई सिद्धांत नहीं है, कर्म में आलस्य- प्रमाद आना तपोगुण है। यह भी कर्म का एक कौशल है, की यदि कर्म बदलते रहता है, तो कभी कोई थकता नहीं है। उपनिषद् पढ़ते पढ़ते थक गए तो पुराण पढ़ने लगे। उससे थके तो काव्य पढ़ने लगे। विषय बदलते जावे थकेंगे नहीं।
Review of Karmayog by Swami akhandanand Saraswati Hindi pdf download
कर्मयोग पुस्तक में महाराज श्री स्वामी श्री अखंडानंद सरस्वती जी द्वारा कर्म योग के प्रवचनों को संकलित कर प्रकाशित किया गया है। श्रीमद्भागवत गीता के तृतीय अध्याय को ‘ कर्मयोग’ के नाम से जानते हैं। इस पुस्तक पीडीएफ में 315 पृष्ठ है। जो की कर्मयोग की आदर्श स्थापित करता है।
इस पुस्तक पीडीएफ को आपको प्रतिदिन पढ़ना चाहिए कर्मयोग सिद्धांत के गूढ़ रहस्यों ज्ञान से भरा हुआ है, यह पुस्तक। यह पुस्तक आपको धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, महापुराण, वेद के साथ साथ आधुनिक मनुष्य के व्यवहार और क्रियाकलाप को भी जोड़ने का कार्य किया है, स्वामी जी ने। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप प्रत्येक शब्द से आप कुछ न कुछ सीखेंगे।
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