Ramprashad Bismil Autobiography In Hindi PDF Free Download

Ramprashad Bismil Autobiography In Hindi PDF Free Download हमे स्वतंत्रता अथक परिश्रम, लाखो बलिदानों,और जान की बाजी लगाकर मिली है, लेकिन अफसोस की बात है, हमारे पूजनीय क्रांतिकारी की बलिदान का मूल्य आज के नेता, मंत्री और सरकार नही समझ पा रही है।

रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ का जन्म 11 जून 1897 ब्रिटिश भारत शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे अपने पिता मुरलीधर और माता मूलमति की दूसरी संतान थे। वे सन् 1916 में 19 वर्ष की आयु में क्रांतिकारी मार्ग में कदम रखा था।। राम प्रसाद बिस्मिल को सभी लोग केवल क्रांतिकारी जानते है, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय योगदान देने के अलावा वे कवि, शायर , अनुवादक , बहुभाषी , इतिहासकार , और साहित्यकार भी थे।

11 वर्ष के क्रांतिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तको लिखी और स्वयं उन्हें प्रकाशित किया। उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे अपना संगठन मजबूत किया और हथियार खरीदे। उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज्य का विरोध करने के लिए किया। यह 11 पुस्तके  उनके जीवन काल में प्रकाशित हुई जिनमें से अधिकतर सरकार द्वारा जब्त कर लिए गए।

राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ को ब्रिटिश सरकार द्वारा मैनपूरी षड्यंत्र और काकोरी कांड के षड्यंत्र में फंसाकर संयुक्त प्रांत आगरा और अवध की लखनऊ सेंट्रल जेल की 11 नंबर बैरक में रखा गया था इसी जेल में उनके दल के अन्य साथियों को एक साथ रखकर उन सभी पर ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध साजिश रचने का मुकदमा चलाया गया था।

Ramprashad Bismil Autobiography In Hindi PDF
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लेखक : रामप्रशाद बिस्मिल

पुस्तक की भाषा : हिंदी

पेज : 130

प्रारंभिक जीवन

रामप्रसाद ‘बिस्मिल’  के जन्म के समय उनके परिवार बड़े दुर्दिन में जी रहे थे। उस समय परिवार के पास कमाई के कोई साधन नहीं थे। किसी भी तरह मोटा अनाज बाजरा , कुकनी , सामा ,ज्वार आदि खाकर दिन काटना चाहा , किंतु फिर भी गुजारा नहीं हुआ। राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के बाद पांच बहनों और तीन भाइयों का जन्म हुआ।

दादा जी ने कहा की कुल की प्रथा के अनुसार कन्याओं को मार डाला जाए , किंतु माताजी ने इसका विरोध किया और कन्याओं की प्राण की रक्षा की। मेरे कुल में यह पहला ही समय था की कन्याओं का पोषण हुआ।बचपन से ही पिताजी रामप्रसाद बिस्मिल के शिक्षा का अधिक ध्यान रखते थे। और कड़ी अनुशासन में रखा करते थे।

और जरा सी फूल पर वह बहुत पीते थे। पिता जी मुझे अंग्रेजी पढ़ाना नहीं चाहते थे और किसी कारोबार में लगाना चाहते थे किंतु माता जी की कृपा से मैं अंग्रेजी पढ़ने भेजा गया। मुंशी इंद्रजीत जी के सानिध्य में रहकर मैं आर्य समाज से जुड़ गया।

Ramprashad Bismil Autobiography In Hindi PDF मुंशी जी ने आर्य समाज संबंधी कुछ उपदेश दिए। इसके बाद मैंने सत्यार्थ प्रकाश (आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा लिखित ग्रंथ) पढ़ा। सत्यार्थ प्रकाश के अध्ययन श्याम मेरे जीवन के इतिहास में एक नया पृष्ठ खुल गया।

मैंने उसमें लिखित ब्रह्मचर्य के कठिन नियमों का पालन करना आरंभ कर दिया। मैं एक कंबल और को तख्त पर बिछा कर सोता और प्रातकाल 4:00 बजे बिस्तर से उठ जाता। मैंने रात के समय भोजन करना भी छोड़ दिया। रात को केवल थोड़ा दूध ही पीने लगा मिर्च खटाई तो छूता भी नहीं था। मेरा स्वास्थ्य भी दर्शनीय हो गया। मैंने थोड़े दिनों में ही बड़ा कट्टर आर्य समाजी हो गया।

मेरे माता मेरे धर्म काल में तथा शिक्षा ग्रहण करने में बड़ी सहायता करती थी। वह प्रातकाल 4:00 बजे ही मुझे दगा दिया करती थी मेरे जीवन में कुछ लोगों का अधिक समय मिला उनमें से एक थी मेरी मां। माताजी के अतिरिक्त जो कुछ जीवन तथा शिक्षा मैंने प्राप्त की वाह पूज्य पाल श्री 108 स्वामी रामदेव जी महाराज के मदद से।

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क्रांतिकारी आंदोलन और मेरा स्वदेश प्रेम

अंग्रेजों की दासता स्वीकार नहीं करने का मैंने फैसला किया। कांग्रेस के अधिवेशन के अवसर पर लखनऊ में ही मालूम हुआ कि एक गुप्त समिति है जिसका उद्देश्य क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेना है, अपने एक मित्र द्वारा क्रांतिकारी समिति का सदस्य हो गया। उस समय समिति के पास धन का भारी अभाव था, जिसके कारण समिति के पास अस्त्र शस्त्र का भारी किल्लत थी। Ramprashad Bismil Autobiography In Hindi PDF मैंने कई पुस्तक प्रकाशित किया ताकि समिति के लिए धन इकट्ठा कर सकूं। उन पैसों से समिति के लिए अफसोस थे वहां तिहार की खरीदारी करना था।

रेलवे डैकैती (काकोरी कांड)

Ramprashad Bismil Autobiography In Hindi PDF यह घटना उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जगह पर हुआ था 10 नवयुवक ने इस क्रांतिकारी घटना का अंजाम दिया था। बहुत से लोग उस  ट्रेन में सवार थे। रेलवे की संदूक तोड़कर तीन गठरिया में थैलियां  बांधी। रास्ते में थैलियां में से रुपया निकालकर गठरी बांधी और उसी समय लखनऊ सहारा पहुंचा। इस घटना से भविष्य की कार्य की बहुत बड़ी आशा बंद गई जितना कार्य था सभी निपट गए। हमे अस्त्र शस्त्र भरपूर हो गए।

गिरफ्तारी

     ” जिन्हे हम हार समझे थे गला अपना सजाने को

          वही अब नाग बन बैठे हमारे काट खाने को”

काकोरी डकैती होने के बाद से ही पुलिस बहुत सचेत हो गई। चारों ओर शहर में यही चर्चा थे की डकैती किसने कर ली। कई मित्रों ने कहा भी कि सतर्क रहो। मेरी समझ में कुछ नहीं आया मैंने विचार किया कि यदि मेरी गिरफ्तारी हो वह भी जाएगी तो पुलिस मेरे विरोध कुछ भी प्रमाण नहीं जुटा सकेगा।

यही मेरी सबसे बड़ी भूल थी। प्रातकाल 4:00 बजने पर मैं जगा शादी से निर्मित होने पर बाहर द्वार पर बंदूक के कुंदे सुनाई दी। मैं समझ गया कि पुलिस आई है, मैं तुरंत आगे बढ़कर दरवाजा खोल लिया और गिरफ्तार हो गया। मुझे गिरफ्तारी का तनिक भी वह नहीं था मैं चाहता तो वहां से आराम से भाग जाता मेरी हथकड़ी आदि कुछ ना डाली गई थी।

अभियोग और फांसी की मनहूस दिन

काकोरी में रेलवे ट्रेन लूट जाने के बाद ही पुलिस का विशेष विभाग उक्त घटना का पता लगाने के लिए नियुक्त किया गया। एक विशेष व्यक्ति हॉर्टन इस विभाग के निरीक्षक थे। उन्होंने घटनास्थल तथा रिपोर्टों को देखकर या पता लगाएं कि यह कर क्रांतिकारियों का है, प्रांत के सभी क्रांतिकारियों की जांच शुरू हुई। मेरे मित्र इंद्र भूषण की गिरफ्तारी हुई। इंद्र भूषण ने दूसरे दिन बयान दे दिया।

बनारसी लाल की भी गिरफ्तारी हुई वह मेरे बारे में कुछ अधिक ही जानता था। और वह सरकारी गवाह बना लिया गया। उधर कलकत्ते में दक्षिणेश्वर में एक मकान में बम बनाने का सामान एक बम सात रिवाल्वर , पिस्तौल तथा कुछ राजद्रोहआत्मक साहित्य पकड़ा गया। इसी इसी मकान में श्री राजेंद्रनाथ लाहरी जो इस मुकदमे में फरार थे गिरफ्तार हुए। इस तरह धीरे धीरे 36 लोग गिरफ्तार हुए। और सरकार को मेरे खिलाफ सबूत मिल गया।

अंतिम समय की बाते

मरते ” बिस्मिल”  “रोशन लहरी”  “असफाक” अत्याचार से।

होंगे पैदा सैकड़ों इनके रुधिर की धार से।

19 सितंबर, 1927 ईस्वी को यह पंक्ति राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ साहब ने स्वयं लिखा था। जबकि 16 दिसंबर, 1927 ईस्वी सोमवार को 6:30 प्रातः काल इस शरीर को फांसी पर लटका देने की तिथि निश्चित होगा चुकी है। फांसी से पहले अंतिम इच्छा पूछने पर उन्होंने कहा था ” I WISH THE DOWNFALL OF BRITISH EMPIRE !” 

वह फांसीघर आज भी मौजूद है। लकड़ी का फ्रेम और लिवर भी सुरक्षित है। कोठरी नंबर सात में रहे थे बिस्मिल। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को जिला कारागार लखनऊ से 10 अगस्त 1927 को गोरखपुर जेल जेल में लाया गया था। राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने 4 महीने 10 दिन तक इस कोठरी को साधना केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया। इस कोठरी को अब बिस्मिल कक्ष और शाहिद पंडित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ बैरक के नाम से विकसित किया गाय है।

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