अष्टावक्र गीता | Ashtavakra Gita

Ashtavakra Gita
Ashtavakra Gita
पुस्तक का विवरण / Book Details
Book ka Nameअष्टावक्र गीता | Ashtavakra Gita
write byUnknown
Categoryसंस्कृति | Culture, हिन्दू / Hinduism, Geeta
Size54.4 MB
Download StatusAvailable
Language / भाषाहिंदी / Hindi
Pages181
QualityGood

अष्टावक्र गीता | Ashtavakra Gita के कुछ अंश :- जब राजा ने प्रश्न किया तब ज्ञानविज्ञान परम हितैषी अष्टावक्रमुनिने विचार किया कि, यह पुरुष तो अधिकारी है और संसार बंधन से मुक्त होने की इच्छा से मेरे निकट आया है, इस कारण साधनचतुष्टय अंधकार ब्रह्म-तत्त्वत्का उपदेश करुं, क्योंकि साधनचतुष्टयके बिना कोटि

उपाय करने से भी ब्रह्मविद्या फलीभूत नहीं होती है, इस कारण शिष्यको प्रथम साधनचतुष्टयका उपदेश करना योग्य है। और साधनचतुष्टयके अनंतरही ब्रह्मज्ञानके विषयकी इच्छा करनी चाहिये, इस प्रकार विचारकर अष्टावक्रजी बोले कि, हे तात ! हे शिष्य ! संपूर्ण अनर्थोकी निवृत्ति और परमा- I

नंदमुक्तिकी इच्छा जन हो तब शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध इन पांचों विषयोंको त्याग दे, ये पांच विषय कर्ण, त्वचा, नेत्र, जिह्वा और नासिका इन पांच ज्ञानेन्द्रियोंके हैं, ये संपूर्ण जीवके बंधन हैं, इनसे बँधा हुआ जीव उत्पन्न होता है और मरता है तब बड़ा दुःखी होता है, जिस प्रकार विष भक्षण करनेवाले पुरुषको दुःख होता है, उसी प्रकार शब्दा- दिविषयभोग करनेवाला पुरुष दुःखी होता है । अर्थात् शब्दादिविषय महा अनर्थका मूल है; उन विषयोंको तू त्याग दे । अभिप्राय यह कि, देह आदिके विषयमें “मैं हूँ, मेरा है “

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