Swami Vivekananda Ki Vani Hindi PDF Book

Swami Vivekananda Ki Vani Hindi PDF Book 

स्वामी विवेकानन्द की वाणी, जीवन परिचय, बालक नरेंद्र से स्वामी विवेकानन्द और  भगवान से मिलने की कहानी

Swami Vivekananda Ki Vani Hindi PDF Book
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प्रकाशक ;  स्वामी ब्रह्मस्थानंद (अध्यक्ष रामकृष्ण मठ नागपुर)

अनुवादक; पंडित सुक देव प्रसाद तिवारी (एम.ए , एल.एल.बी, प्राध्यापक नागपुर महाविद्यालय)

Original Book ;  ‘Thus Spake Vivekananda’

पृष्ठ संख्या; 81

किताब के बारे में;

स्वामी विवेकानंद की वाणी किताब रामकृष्ण मठ नागपुर का हिंदी संस्करण है। जो की Thus Spake Vivekananda  का हिंदी संस्करण है। इसमें के अधिकांश कविताओं के अनुवाद का श्रेय हिंदी जगत के प्रतिष्ठित लेखक एवं कवि पंडित सुखदेव प्रसाद तिवारी (श्री विनय मोहन शर्मा) जो की एम.ए , एल.एल.बी और नागपुर महाविद्याल में प्राध्यापक है।

यह किताब स्वामी विवेकानंद के आरंभिक जीवन और रामकृष्ण परमहंस के जीवन का श्रेष्ठतम और संक्षिप्त वर्णन किया गया है। इस किताब को पढ़ने में आपको एक घंटे का समय लगेगा। इस पुस्तक का अनुवाद अतुलनीय है। आप इस किताब को कैसे पढ़ लेंगे आपको समय का पता नही चलेगा। हम आशा करते है, की इस लेख के माध्यम से आप ओरिजनल पुस्तक को जरूर पढ़िएगा।

स्वामी विवेकानंद का एक संक्षिप्त जीवन विवरण Swami Vivekananda Ki Vani Hindi PDF Book

स्वामी ब्रह्मस्थानंद ने स्वामी जी की वाणी पुस्तक के नवीन संस्करण के माध्यम से बहुत कम शब्दों में स्वामी जी की गुरु शिष्य परंपरा और उनके विराट स्वरूप का वर्णन कर दिया है।

Swami Vivekananda Ki Vani Hindi PDF Book लेखक कहते है, श्री रामकृष्ण परमहंस के लिए ईश्वर एक तथ्य तथा वास्तविकता थी। उन्हें ईश्वर के बारे में वाद-विवाद करने की आवश्यकता नहीं थी। भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति के शिखर थे। उनका दृष्टिकोण वैश्विक उनकी अनुभूति सर्वस्पर्शी सर्वसमावेशक थी।

स्वामी विवेकानंद उनके प्रधान छात्र उनके अत्यंत प्रिय शिष्य उनके महानतम उतराधिकारी तथा अत्यंत दक्ष कार्यवाहक भी थे। स्वामी जी का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। उनके पिता कोलकाता के प्रसिद्ध वकील विश्वनाथ दत्त थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी अत्यंत सुसंस्कृत कुलीन महिला थी। माता  को पूर्ण विश्वास था कि भगवान शिव के प्रति आंतरिक प्रार्थना के फलस्वरुप इस पुत्र की प्राप्ति हुई है।

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अकल्पनीय स्मरणशक्ति, तीक्ष्ण बुद्धि, असाधारण प्रतिभा का प्रतिमूर्ति थे स्वामी विवेकानन्द

बालक नरेंद्र नाथ में इतना जोश तथा उत्साहपूर्ण ओज था की घरवालों को उसे वश में करना तथा उनपर नियंत्रण रखना अति कठिन था। वह देह से बलिष्ठ तथा सभी प्रकार के खेलकूद में निपुण था। वह श्रेष्ठतम तथा अंतर्जात  प्रतिभा से मंडित मेधावी छात्र था। उनका पठन-पाठन का क्षेत्र व्यापक, ग्रहण क्षमता तीक्ष्ण, उनकी स्मरण शक्ति अति साधारणतम थी। आयु की तुलना में विवेक विचार योग्यता भी अद्भुत थी।

बाल्यकाल से ही वह उच्च आध्यात्मिक चेतना से भरपूर तथा गंभीर ध्यानमग्नता में रुचि रखने वाला था। बाल्यावस्था में ही उसमें ऐसी अनेक विलक्षण शक्तियां प्रकट हुई थी। जो उनकी आयु के अन्य बालको में बिल्कुल नहीं था। नरेंद्र नाथ चुनौती को स्वागत करने वाले थे। तथा भय का नाम तक नहीं जानते थे। विद्यालय तथा महाविद्यालय में ही सैकड़ों विशेषताओं तथा उत्कर्ष ने उन्हें मेधा संपन्न मनुष्य के रूप में लक्षित कर दिया था

नरेंद्रनाथ का ईश्वर (रामकृष्ण परमहंस ) से मुलाकात

नरेंद्र नाथ विचारशील तथा ईश्वर विषयक प्रश्न उन्हें व्याकुल किया करता था। उनकी सशक्त बुद्धि केवल  विश्वास तथा रूढ़िगत आस्था के आधार पर भगवान को मानने को तैयार नहीं था। ईश्वर के अन्वेषण में संदेहग्रस्त यह युवक इधर-उधर भटकता रहा। ईश्वर की खोज में तो वह लगभग हताश ही बैठा था। तथा उन्होंने यही निष्कर्ष निकाल लिया था कि ईश्वर केवल किसी विक्षिप्त व्यक्ति के विचार की ही उपज है। यह तो ईश्वर की नीति थी कि उसे रामकृष्ण परमहंस के पास ले गया।

बालक नरेंद्र  ने रामकृष्ण परमहंस से पहला प्रश्न पूछा था कि क्या उन्होंने ईश्वर को देखा है? रामकृष्ण हंसते हुए उत्तर दिया कि न केवल उन्होंने इस वर्ग के दर्शन किए हैं परंतु वे नरेंद्र को भी ईश्वर के दर्शन करा देंगे। फिर यही से नरेंद्र नाथ का सनातन धर्म को पश्चिम पहुंचाने की यात्रा शुरू होती है।

Swami Vivekananda Ki Vani Hindi PDF Book लगभग 5 वर्ष नरेंद्र नाथ श्री रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में रहे तथा उनके द्वारा शिक्षित तथा प्रशिक्षित हुए। प्रबल अन्तमंथन की इस अल्पा अवधि के पश्चात नरेंद्र नाथ ने परमहंस की समस्त अतिमानवीय प्रज्ञा को आत्मसात कर लिया था। तथा वह उनके स्वरूप के अनुरूप रूपांतरित हो गया।

रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि और रामकृष्ण मठ की स्थापना

16 अगस्त 1886 के दिन राम कृष्ण की महासमाधि हुई, उस समय नरेंद्र नाथ 23 वर्ष का भी नहीं हुआ था। अब अब बालक नरेंद्र के कंधों पर विराट भरा पड़ा था। उसने घर त्याग कर दिया। अब बालक नरेंद्र स्वामी विवेकानंद बन गया था।  उन्होंने एक मठ की स्थापना की। उन्होंने अपनी मातृभूमि का विश्लेषण करते हुए उनकी समस्याओं को प्रत्यक्ष समझते हुए तथा उसके  उत्थान के लिए समाधान ढूंढते हुए उत्तरी छोर में हिमालय से लेकर दक्षिणी छोर में कन्याकुमारी तक भ्रमण किया।

अब स्वामी विवेकानंद सितंबर मास में होने वाली विश्व धर्म महासभा में भाग लेने के लिए भाप चलित जलयान द्वारा रवाना हुए। उन्हें औपचारिक रूप से निमंत्रित या उनका नाम प्रतिनिधियों की सूची में शामिल नहीं किया गया था। सम्मिलित ना होने देने की किसी भी कठिनाई की तुलना में वे कहीं अधिक प्रदीप्तप्रतिभा संपन्न थे।

जब गरिमापूर्ण सभा को संबोधित करने की उनकी बारी आई तब वे उषाकाल के सूर्य की भांति उठे तथा ‘अमेरिका की बहनों तथा भाइयों’ यह शब्द कहे। उषा हार्दिक पुकारने विश्व धर्म महासभा तथा पश्चिमी जगत को मंत्रमुग्ध कर दिया। मिस अंकिता में जकड़े धर्म पंथ हो तथा बोने मत वादों से ऊपर उठकर समन्वय तथा सार्वभीमिकता के बारे में बोले। उनका संदेश मानो घूटे लोगो के लिए जीवनविश्वास था।

स्वामी विवेकानंद की वाणी के माध्यम के माध्यम से बहुत सारे विवेक सूत्र दिया गया है, जो बल, बुद्धि, श्रद्धा को बढ़ावा देता है।

” उपनिषदों का प्रत्येक पृष्ठ मुझे शक्ति का संदेश देता है। यह विषय विशेष रूप से आसमान रखने योग्य है, समस्त जीवन में मैंने यही महा शिक्षा प्राप्त की है। उपनिषद कहते हैं, हे मानव तेजस्वी बनो, वीर्यवान बनो, दुर्बलता को त्यागो।”

 _विवेकानंद साहित्य

” हे बंधु गण, तुम्हारी और मेरी नसों में एक ही रक्त का प्रवाह हो रहा है, तुम्हारा जीवन मरण मेरा भी जीवन मरण है। मैं तुमसे कहता हूं, कि हमको शक्ति, केवल शक्ति ही चाहिए। और उपनिषद शक्ति की विशाल खान है। उपनिषदों में ऐसी प्रचुर शक्ति विद्यमान है, कि वह समस्त संसार को तेजस्वी बना सकता है।”।                                          _विवेकानंद साहित्य

” समस्त शक्ति तुम्हारे भीतर हैं तुम कुछ भी कर सकते हो। और सब कुछ कर सकते हो, यह विश्वास करो। मत विश्वास करो कि तुम दुर्बल हो। आजकल हम में से अधिकांश जैसे अपने को आधा पागल समझते हैं, तुम अपने को ऐसा मत समझो। इतना ही नहीं तुम कुछ और भी और हर एक काम बिना किसी की सहायता से कर सकते हो। तुममें सब शक्ति है। तत्पर हो जाओ। तुममें जो देवत्व छिपा हुआ है उसे प्रकट करो।”

  _विवेकानंद साहित्य                                   

” मैं मैं जो चाहता हूं, वह है, लोहे की नसें और फौलाद की स्नायु जिनके भीतर मन वास करता हो, जो की वह पत्थर के समान पदार्थ का बना हो।  बल, पुरुषार्थ,  वीर्यवान और ब्रह्मा तेज।

 _विवेकानंद साहित्य

स्वामी विवेकानंद की वाणी पुस्तक निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद की वाणी पुस्तक में विवेकानंद की जीवनी को यथार्थ रूप से लिखा गया है। इस पुस्तक का अनुवाद बेहतरीन है। इस पुस्तक के शब्द वाक्य रचना आपको इस पुस्तक को पढ़ने के लिए मजबूर करेगा। इस लेख में आपको इस पुस्तक की सभी महत्वपूर्ण प्रसंग को लिखने का प्रयास किया गया है, फिर भी कोई त्रुटि हो तो आपके कॉमेंट का इंतजार रहेगा।

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