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PDF Name | Shiva Puran | शिव पुराण PDF |
No. of Pages | 812 |
PDF Size | 40 MB |
Language | Hindi |
Tags | Ved Puran Upanishad |
PDF Category | Religion & Spirituality |
Published/Updated | March 24, 2022 |
Source / Credits | vedpuran.net |
Comments | 0 |
Uploaded By | Admin |
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Table of Contents
shiv puran pdf in hindi | शिव पुराण हिंदी
नमस्कार दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आये हैं प्रसिद्ध धार्मिक पुस्तक Shiva Puran | सम्पूर्ण शिव पुराण PDF हिन्दी भाषा में। अगर आप भी Shiva Puran | शिव पुराण हिन्दी पीडीएफ़ डाउनलोड करना चाहते हैं अथवा इच्छुक है तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। इस लेख में हम आपको देंगे Shiva Puran | शिव पुराण के बारे में सम्पूर्ण जानकारी।
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shiv puran pdf Vivaran:
इस अद्भुत शिव महापुराण में भगवान शिव के विविध रूपों अवतारों और ज्योतिर्लिंगों के महत्व का वर्णन किया गया है इसमें इन्हें पंच देवों के प्रधान अनादि शुद्ध परमेश्वर का स्थान प्राप्त हुआ है।
शिव पुराण में भगवान शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्विक विवेचन रहस्य महिमा और उपासना का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। यह मूलत है संस्कृत भाषा में लिखी गई है। इन्हें पंचदेव में प्रधान अनादि शुद्ध परमेश्वर के रूप में भी मान्यता प्राप्त हुई है।
शिव महिमा और कथाओं के अतिरिक्त इसमें पूजा पद्धति अनेक ज्ञान प्रद विशेषताएं और शिक्षाप्रद कथाओं का एक अद्भुत और बहुत ही सुंदर संयोजन किया गया है
इसमें भगवान महादेव के व्यक्तित्व का गुणगान किया गया है। शिव जो स्वयंभू है शाश्वत है, सर्वोच्च है, ब्रह्मांड के अस्तित्व के आधार हैं। सभी पुराणों में शिवपुराण को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इसमें भगवान शिव के अनेक रूप में अवतार ज्योतिर्लिंग भक्तों और भक्ति के अनेक रूपों का वर्णन किया गया है।
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About the book shiv puran pdf:
In this wonderful Shiv Mahapuran, various forms of Lord Shiva, incarnations and importance of Jyotirlingas have been described, in which they have got the place of the eternally pure God, the head of the five gods.
In Shiva Purana, the elemental interpretation of the welfare form of Lord Shiva, the mystery, glory and worship has been described in detail. It is initially written in the Sanskrit language. He has also been recognized as the prime eternal, pure God in Panchdev.
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In addition to Shiva glory and stories, an excellent combination of worship methods, many knowledgeable features and instructive stories has been done.
In this, the personality of Lord Mahadev has been praised. Shiva, who is Swayambhu, is eternal, supreme, the basis of the universe’s existence. Shiv Purana holds the highest position among all the Puranas. Many forms of Lord Shiva’s avatar Jyotirlinga devotees and many forms of devotion have been described.
शिव पुराण कब पढ़ना चाहिए?
वैसे तो यह महादेव का एक अनन्य ग्रंथ है। जिसका हर समय हर दिन पाठ बहुत थी शुभकारी एवं हितेषी है। परंतु फिर भी अगर इसका पाठ अगर श्रावण मास में किया जाए तो यह अत्यंत ही शुभ फल देने वाला माना गया है।
क्योंकि पुराणों में ऐसी मान्यता है कि श्रावण मास भगवान शिव का सबसे पसंदीदा महीना माना जाता है। इसके अलावा सोमवार को इस का पाठ अवश्य करना चाहिए। सोमवार को शिव पुराण का पाठ करने से महादेव की विशेष अनुकंपा प्राप्त होती है।
शिवपुराण कैसे पढ़ें?
शिवपुराण को पढ़ने से पूर्व कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक है| वैसे तो भोलेनाथ को बिना नियम से भी प्रसन्न किया जा सकता है परंतु नियम रखने से हमारे ध्यान केंद्रित में सहायता प्राप्त होती है।
- शिव प्राण को पढ़ने से पूर्व तन और मन को अवश्य शुद्ध करें अपने सारे नकारात्मक विचारों को त्याग दें| मन में उत्पन्न सारी चिंताओं का भी त्याग कर दें।
- नए अथवा स्वच्छ वस्त्र धारण करें
- भगवान भोलेनाथ के प्रति श्रद्धा बनाएं
- किसी के भी प्रति द्वेष की भावना कदापि ना रखें
- भगवान भोलेनाथ का नाम स्मरण कर कथा प्रारंभ करें।
शिव पुराण में कितने अध्याय हैं?
शिव महापुराण में 11 खंड है 7 सहित आएं हैं 24000 श्लोक हैं।
शिव पुराण पढ़ने से क्या लाभ होता है?
श्री शिव महापुराण पढ़ने से मनुष्य में बुद्धि का विकास होता है| उनमें नकारात्मकता समाप्त होती है तथा सकारात्मक का सृजन होता है| जिससे उन्हें अपने जीवन में आने वाले संकटों का बेहतरीन तरीके से निवारण कर पाते हैं| श्री शिव महापुराण यह भी सिखाता है कि प्रगति के साथ कैसे जुड़े सांसारिक चीजें पाने के लिए किस तरह से अपना दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।
भगवान शिव के 12 नाम कौन-कौन से हैं?
- सोमनाथ
- मल्लिकार्जुन
- महाकालेश्वर
- ओमकारेश्वर
- वैद्यनाथ
- भीमाशंकर
- रामेश्वर
- नागेश्वर
- विश्वनाथ
- त्रंबकेश्वर
- केदारनाथ
- घुश्मेश्वर